सौंदर्य को देखकर पुरुष विचलित हो जाता है, नारी भी होती होगी। फिर भी सत्य यह हैं कि सौंदर्य आनंद नहीं समाधि हैं।
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स्वार्थ हर तरह की भाषा बोलता हैं, हर तरह की भूमिका अदा करता हैं, यह तक की निःश्वर्तता की भाषा भी नहीं छोड़ता हैं यह श्वार्थ।
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